सजीव का संसार(The World of the Living),जन्तु जगत का वर्गीकरण (Classification of animal - GS ONLINE HINDI

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

सजीव का संसार(The World of the Living),जन्तु जगत का वर्गीकरण (Classification of animal

सजीव का संसार(The World of the Living)



जीवधारियों का पांच-जगत वर्गीकरण (Five-Kingdom Classification of Organism) : 

परम्परागत द्वि-जगत वर्गीकरण का स्थान अन्ततः ह्विटकर द्वारा सन् 1969 ई. में प्रस्तावित पांच जगत प्रणाली ने ले लिया। इसके अनुसार समस्त जीवों को निम्नलिखित पांच जगत में वर्गीकृत किया जाता है
1. मोनेरा, 2. प्रोटिस्टा, 3. पादप, 4.कवक और 5. जन्तु।

(a) मोनेरा (Monera) : इस जगत में सभी प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात् जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया तथा आर्की बैक्टिरीया
सम्मिलित किए जाते हैं। तन्तुमय जीवाणु भी इसी जगत के भाग हैं।

(b) प्रोटिस्टा (Protista) : इस जगत में विविध प्रकार के एककोशिकीय, प्रायः जलीय यूकैरियोटिक (Microorganism) जीव सम्मिलित किए गए हैं। पादप एवं जन्तु के बीच स्थित यूग्लीना इसी जगत में है। यह दो प्रकार की जीवन पद्धति प्रदर्शित करती है-सूर्य के प्रकाश में स्वपोषित एवं प्रकाश के अभाव में इतर पोषित, इसके अंतर्गत साधरणतया प्रोटोजोआ आते हैं।

(c) पादप (Plantal) : इस जगत में प्रायः वे सभी रंगीन, बहुकोशिकीय, प्रकाश संश्लेषी उत्पादक जीव सम्मिलित हैं।
शैवाल, मॉस, पुष्पीय तथा अपुष्पीय बीजीय पौधे इसी जगत के अंग हैं।

(d) कवक (Fungi) : इस जगत में वे यूकैरियोटिक तथा परपोषित जीवधारी सम्मिलित किए जाते हैं जिनमें अवशोषण द्वारा
पोषण होता है। ये सभी इतरपोषी होते हैं। ये परजीवी अथवा मृतोपजीवी होते हैं। इसकी कोशिका भित्ती काइटिन की बनी होती है।

(e) जन्तु (Animal) : इस जगत में सभी बहुकोशिकीय जनतुसमभोजी यूकैरियोटिक, उपभोक्ता जीव सम्मिलित किए जाते हैं। इनको मेटाजोआ भी कहते हैं। हाइड्रा, जेलीफिश, कृमि, तारा मछली, सरीसृप, उभयचर, पक्षी तथा स्तनधारी जीव इसी जगत के अंग हैं।


जन्तु जगत का वर्गीकरण (Classification of animal kingdom) : 

संसार के समस्त जन्तु जगत को दो उपवर्गों में विभक्त किया गया है-1. एककोशिकीय प्राणी, 2. बहुकोशिकीय प्राणी। 

 # प्राणी विज्ञान या जन्तु विज्ञान (Zoology)


* विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत जन्तुओं तथा उनके कार्यकलापों का अध्ययन किया जाता है।
* कोशिकीय जीवों का वर्गीकरण दो भागों में किया गया है - 
एककोशिकीय और बहुकोशिकीय


# (एककोशिकीय):एककोशिकीय प्राणी एक ही संघ प्रोटोजोआ में रखे गए ।

* प्रोटोजोआ Protozoa)- इनका शरीर एककोशिकीय होता है, ये सूक्ष्म जीव होते हैं जिन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जाता है. ये तैरने के लिये कशाभों (Flagellum) या पदाभों का उपयोग करते हैं. इनमें सभी जैविक क्रियाएँ (भोजन, श्वसन, उत्सर्जन, जनन) शरीर
के अन्दर होती है, अधिकांश प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं तथा दूसरों पर आश्रित होते हैं, जैसे - अमीबा, पैरामीशियम, युग्लीना,

# (बहुकोशिकीय): बहुकोशिकीय प्राणियों को 9 संघों में विभाजित किया गया।



(1) पोरिफेरा Porifera)- इस वर्ग के सभी जीव खारे पानी में पाये जाते हैं तथा बहुकोशिकीय होते हैं. इनके शरीर पर कई छिद्र (Pores) होते है, जिनकी सहायता से इनमें पानी भरता है तथा ये खाना प्राप्त करते है. जैसे- स्पंज, साइकन।

(2) सीलेण्ट्रेटा Coclenterata)- ये प्राणी जल में रहते हैं परन्तु तैर नहीं पाते सिर्फ बहते हैं, तथा इनके मुख के चारों ओर धागेनुमा संरचना
पायी जाती है, जो भोजन पकड़ने में मदद करती है. इन जीवों के शरीर में एक ही सुराख पाया जाता है जिससे ये भोजन ग्रहण तथा उत्सर्जन करते हैं, जैसे-हाइड्रा, जेलीफिश, मूंगा

(3) प्लैटीहेल्मिन्धीस Platy helminthes)- इस वर्ग के जीवों का शरीर किसी फीते की तरह चपटा होता है, इनमें कंकाल नहीं होता है,
इस वर्ग के प्राणियों को कृमि कहते हैं. कुछ कृमि तो जल में स्वतंत्र रूप से पाये जाते हैं. कुछ कृमि इस प्रकार हैं - प्लेनेरिया, फीताकृमि,
लिवर पल्यूक।

(4) ऐस्केल्मिनथीज (Ascheleminthes)- इस वर्ग के प्राणी लम्बे तथा शरीर की रचना बेलनाकार होती है. ये जीव एकलिंगी होते हैं, जैसे- ऐस्केरिस, दुचनेरिया (इसके द्वारा फाइलेरिया रोग होता है), बेडवर्म (एण्टरोबियस-ये बच्चों की गुदा में पाये जाते

(5) एनीलिडा Annelida)-इस वर्ग के प्राणियों का शरीर लम्बा तथा खण्डों में बंटा होता है. तथा अकशेरुकी जीव होते हैं. इनमें प्रचलन
काइटिन की सीटी (Setae) से होता है. इस वर्ग के प्राणी एकलिंगी या उभलिंगी दोनों हो सकते है. जैसे - कॅचुआ (Earthworm), जॉक (Leech)

(6) आर्थोपोडा (Arthropoda)- इस वर्ग में कीट आते हैं. तथा ये एकलिंगी जीव होते है. इस वर्ग के कई जीवों का विकास एनीलिडा वर्ग
के जीवों से हुआ है जिस कारण इन जीवों का शरीर खण्डों के रूप में होता है, इस वर्ग के कीटों में 6 पैर और 4 पंख होते हैं जैसे -
तिलचट्टा, कॅकड़ा (कवच), झींगा मछली (कवच), मक्खी, मच्छर, चींटी और दीमक (कॉलोनी बनाकर रहने वाले जीव) टिडी आदि

(7) मोलस्का Mollusca)- इस वर्ग के प्राणियों में सदैव कवच (Mantle) पाया जाता है. तथा इनका रक्त रंगहीन होता है. जैसे
(कौडी), डोरिस (समुद्री नींबू), ऑक्टोपस, घोंघा, सीपिया।

(8) एकाइनोडर्मेटा Echinodermeta)- इस वर्ग के सभी प्राणी समुद्री होते हैं, तथा इन प्राणियों में बाढ़ कंकाल पाया जाता है, ये समूह
में रहते हैं तथा मंद चाल के होते हैं, जैसे - सितारा मछली Starfish), अर्चिन,

(9)कॉर्बेटा (Cordata)- इस वर्ग के जीव कशेरुकी होते हैं. इन सब की रचना तथा आकृति असमान हैं इस वर्ग के अन्तर्गत निम्न वर्ग हैं -
(A) मत्स्य वर्ग (Pisces)
प्रमुख लक्षण:
(1) ये सभी असमतापी जन्तु हैं।
(i) इनका हृदय द्विवेश्मी होता है और केवल अशद्ध रक्त ही पम्प करता है।
(iii) श्वसन गिल्स के द्वारा होता है।
उदाहरण : स्कोलियोडन, दरियाई घोड़ा तथा टारपीडो।

(B) एम्फीबिया वर्ग (Amphibia)
प्रमुख लक्षण :
(i) ये सभी प्राणी उभयचर होते हैं।
(ii) ये असमतापी होते हैं।
(iii) श्वसन क्लोमों, त्वचा एवं फेफड़ों द्वारा होता है।
(iv) हृदय तीन वेश्मी होते हैं-दो आलिंद व एक निलय होते हैं।
उदाहरण : मेंढक

(C) सरीसृप वर्ग (Reptilia)
प्रमुख लक्षण :
(i) ये वास्तविक स्थलीय कशेरुकी जन्तु हैं।
(ii) दो जोड़ी पाद होते हैं।
(iii) कंकाल पूर्णतः अस्थिर होता है।
(iv) श्वसन फेफड़ों के द्वारा होता है।
(1) इनके अंडे कैल्शियम कार्बोनेट के बने कवच से ढंके रहते हैं।
उदाहरण : छिपकली, सांप, घड़ियाल, कछुआ आदि।

(D) पक्षी वर्ग (Aves)
प्रमुख लक्षण:
(i) इनके अगले पाद उड़ने के लिए पंखों में रूपांतरित हो जाते हैं।
(ii) इसका हृदय चार वेश्मी होता है-दो आलिंद और दो निलय।
(iii) ये समतापी होते हैं।
(iv) इनका श्वसन अंग फेफड़ा है।
(v) मूत्राशय अनुपस्थित रहता है।
उदाहरण : कौआ, मोर, चिड़िया, तोता।
• उड़ न सकने वाला पक्षी किवी और एमू है।
• सबसे बड़ा जीवित पक्षी शुतुर्मुग है।
• सबसे छोटा पक्षी हमिंगबर्ड है।

(E) स्तनी वर्ग (Mammalia)
प्रमुख लक्षण :
(1) त्वचा पर स्वेद ग्रंथियां एवं तैल ग्रंथियां पाई जाती है।
(ii) ये सभी जन्तु उच्चतापी एवं नियततापी होते हैं।
(ii) इसमें दांत जीवन में दो बार निकलते हैं इसलिए इन्हें द्विवारदन्ती कहते हैं।
(iv) इनके लाल रुधिराणुओं में केन्द्र नहीं होता (केवल ऊंट एवं लामा को छोड़कर)
(v) बाह्य कर्ण उपस्थित होता है।
स्तनधारी वर्ग तीन उपवर्गों में बंटा है(a) प्रोटोथीरिया : अंडे देते हैं।
(b) मेटाथीरिया : अपरिपक्व बच्चों को जन्म देते हैं। उदाहरण-कंगारू।
(c) यूथीरिया : पूर्ण विकसित शिशुओं को जन्म देते हैं, जैसे-मनुष्य।

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