मानव श्वसन तंत्र क्या है? श्वसन क्रिया कैसे होती है?श्वसन पथ संक्रमण क्या है?श्वसन तंत्र के रोग, - GS ONLINE HINDI

शुक्रवार, 22 मई 2020

मानव श्वसन तंत्र क्या है? श्वसन क्रिया कैसे होती है?श्वसन पथ संक्रमण क्या है?श्वसन तंत्र के रोग,

मानव श्वसन तंत्र क्या है?श्वसन क्रिया कैसे होती है?श्वसन पथ संक्रमण क्या है?श्वसन तंत्र के रोग,श्वसन अंग,श्वसन की क्रियाविधि



श्वसन तंत्र (Respiratory System) 


श्वसन तंत्र शरीर का वह भाग है जो शरीर के सभी भागों में गैसों का आदान-प्रदान करता है।  श्वसन तंत्र का प्रमुख अंग फुफ्फुस (Lungs) है, जिसका कार्य शरीर के बाकी भागों में गैसों का संवहन करना है इस प्रक्रिया को फुफ्फुसीय श्वसन भी कहते हैं।
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श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग हैं - 

नाक (Nose), नासामार्ग (Nasal passage), श्वासनली (Wind pipe), स्वरयंत्र (Larynx). ट्रेकिया (Trachea),फेफड़े (Lungs), डायाफ्राम
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* नाक (Nose):- 

नाक रीढधारी प्राणियों में पाया जाने वाला छिद्र है, इससे हवा शरीर में प्रवेश करती है जिसका उपयोग श्वसन में क्रिया में होता है, नाक द्वारा सूंघ कर वस्तु की गंध को ज्ञात किया जाता है, नाक से श्वसन करना सही तरीका माना जाता है क्योंकि स्तनधारियों की नाक में छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं जो अन्दर जाने वाली हवा को छानने का कार्य करते हैं, मुँह से सांस लेना नुकसानदायक होता है, मनुष्य की नाक में उपस्थित लैंटिक्युलर लोव सूंघने का कार्य करता है।

* नासामार्ग (Nasal passage):- 

नासामार्ग, श्वासनली से जुड़ी रहती है, नासामार्ग में श्लेष्ण कला Mucous membrane) पायी जाती है जो प्रतिदिन 1/2 लीटर म्यूकस सावित करती है, नासामार्ग में पाया जाने वाला म्यूकस अन्दर जाने वाली वायु को नम बनाता है तथा शरीर का ताप बराबर बनाती है।

* ग्रसनी (Pharyns):- 

यह नासागुहा के ठीक पीछे होती है।
* स्वरयंत्र (Larynx or Voice box):- 
लैरिक्स वह भाग है जो ग्रसनी को ट्रेकिया से जोड़ता है, नाक से ली गयी हवा लैरिंक्स तक आती है, लैरिंक्स के ऊपर एक ढक्कन जैसी संरचना होती है जिसे स्वर यंत्रच्छद (Epiglottis) कहते हैं, जब हम भोजन निगलते हैं तो एपीग्लोटिस बंद हो जाता है जिससे
भोजन श्वासनली में प्रवेश नहीं कर पाता है, लैरिक्स का प्रमुख कार्य ध्वनि उत्पादन करना है, लैरिक्स में भोजन या पानी के गिर जाने के कारण खांसी आती है ताकि भोजन बाहर निकल जाये, जब हम खाना खाते हैं तब लैरिक्स ऊपर दिखाई देता है।

* श्वासनली (Wind pipe or Trachea):- 


श्वासनली की लम्बाई लगभग 4.5 इंच होती है, तथा गले में टटोली जा सकती है, यह ग्रासनली के साथ नीचे वक्षगुहा तक जाती है, वक्षगुहा में पहुँचने पर श्वासनी दो शाखाओं में बंट जाती है, इन शाखाओं को बॉकियोल कहते हैं, एक ब्रोकियोल दाये फेफड़े में जाता है तथा 3 भागों में बंट जाता है तथा दूसरा ब्रोकियोल बांये फेफड़े में जाता है तथा 2 भागों में बंट जाता है।

* फेफड़े (Lungs):- 


मानव के वक्षगुहा (Thoracic cavity) में एक जोड़ी फेफड़े पाये जाते हैं, इनका रंग लाल होता है और रचना स्पंज के समान होती है, फेफड़ो का भार 1.2 किग्रा० होता है, दांया फेफड़ा (650 ग्राम), बांये फेफड़े (550 ग्राम) की तुलना में बड़ा होता है, फेफड़े के चारों ओर झिल्ली होती है जिसे फुफ्फुसावरण (Pleural membrane) कहते हैं, प्लूरल मेम्ब्रेन में विकृति के कारण प्लूरिसी नामक रोग हो जाता है, मानव के फेफड़े का क्षेत्रफल 83 वर्गमीटर होता है जो त्वचा के क्षेत्रफल का 40 गुना है, मानव फेफड़े में रुधिर वाहिनियों का जाल फैला होता है, फेफड़े में अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें वायु-कोष्ठ (Air cells) कहते हैं, जिनके द्वारा रक्त में ऑक्सीजन चली जाती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर आ जाती
है. फेफड़ों के मध्य में हृदय स्थित होता है, फेफड़ों में विकार होने पर क्षय रोग (यक्षमा या तपेदिक या टीबी) रोग होता है, फेफड़ों में होने वाले श्वसन को बाह्य श्वसन कहते हैं।

* डायाफ्राम (diaphragm) :-


 यह एक मांसपेशी है जो शरीर में छाती और पेट के बीच में पायी जाती है, जब डायाफ्राम सिकुड़ता है तो फेफड़े तेज हवा खींचते हैं, तो सांस लेने में दिक्कत आती है जिससे हिचकी आती है।

* श्वसन क्रिया (Respiration):- 

मानव में श्वसन क्रिया दो भागों में होती है - श्वासोच्छावास या सांस लेना Breathing), और गैसों का विनिमय (Exchanges of Gases), आंतरिक श्वसन Internal Respiration)

* श्वासोच्छावास या सांस लेना Breathing) :-

 सांस लेना और सांस छोड़ना, श्वासोच्छावास कहलाता है, सांस लेने की प्रक्रिया की निःश्वसन
(Inspiration) और सांस छोड़ने की प्रक्रिया को (Expiration) कहते हैं, सांस लेते समय 400 मिली० पानी रोज शरीर से निकलता है

* गैसों का विनिमय Exchanges of Gases):- 

गैसों का फेफड़े से शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचना तथा पुनः फेफड़े तक वापस आने की प्रक्रिया को गैसों का परिवहन कहते हैं, ऑक्सीजन का परिवहन रक्त में हीमोग्लोबिन के द्वारा होता है, सांस लेते समय ऑक्सीजन (21%) तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड (0.03%) अन्दर आती है, तथा सांस छोड़ते समय ऑक्सीजन (17%) कार्बन डाइऑक्साइड (4%) निकल जाती है।

* आन्तरिक श्वसन(internal respiration):-

 शरीर के अन्दर रक्त एवं ऊतक द्रव्यों में होने वाले श्वसन को आन्तरिक श्वसन कहते हैं।

* कोशिकीय श्वसन(cellular respiration):- 

भोजन के पाचन के बाद प्राप्त ग्लूकोज का जब ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकरण किया जाता है तो उसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं, कोशिकीय श्वसन दो प्रकार का होता है ऑक्सी-श्वसन और अनॉक्सी-श्वसन
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* ऑक्सी-श्वसन (oxy respiratory) :-

 यह श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किया जाता है, इस प्रक्रिया में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण होता है।

* अनॉक्सी-श्वसन(anoksi respiratory)

:- यह श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में किया जाता है, इस प्रक्रिया में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण नहीं होता तथा ग्लूकोज
मांसपेशियों में लैक्टिक अम्ल के रूप में परिवर्तित हो जाता है, इस प्रक्रिया को ग्लाइकोलिसिस कहते हैं।

* (ऑक्सीकरण (oxidation) :- 

इस प्रक्रिया में पदार्थ में ऑक्सीजन मिल जाती है या पदार्थ से हाइड्रोजन निकल जाती है, या किसी पदार्थ से इलैक्ट्रॉन का कम हो जाना ऑक्सीकरण कहलाता है)

* (ग्लाइकोलिसिस ( glycolysis ):-

 इस प्रक्रिया में ग्लूकोज का आंशिक ऑक्सीकरण होता है तथा इसका कुछ हिस्सा पाइरुविक अम्ल बनता है इसके दो अणु होते हैं, क्रेब्स चक्र का संबन्ध ग्लाइकोलिसिस से है)

* (उपापचय (Metabolism):-

 यह जीवों में होने वाली रासायनिक प्रक्रिया है जिससे जीवों को बड़ने, अपनी रचना बनाये रखने, प्रजनन करने तथा पर्यावरण में रहने के लिये आवश्यक होती है. इस प्रक्रिया में शरीर का भार बड़ता है, जैसे-पाचन क्रिया)

* (अपापचय (Catabolism):- 

यह जीवों में होने वाली एक रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर में ऑक्सीकरण कर रहे अणुओं को छोटी इकाईयों में विभाजित किया जाता है. इस प्रक्रिया में शरीर का भार घटता है, जैसे श्वसन क्रिया)


श्वसन में निम्नलिखित चरण सम्मिलित है(includes the following steps respiratory):-


  • श्वसन या फुफ्फुस सम्वहन जिससे वायुमण्डलीय वायु अन्दर खींची जाती है और CO2से भरपूर कूपिका वायु को बाहर मुक्त किया जाता है।
  • कूपिका झिल्ली के आर-पार गैसों (O2 एवं CO2) का विसरण
  • रूधिर (रक्त) द्वारा गैसों का परिवहन।
  • रूधिर और ऊतकों के बीच 02 और CO2 का विसरण।

* अपचयी क्रियाओं के लिए कोषिकाओं द्वारा ऑक्सीजन का उपयोग और उसके फलस्वरूप CO2 का उत्पन्न होना।


* श्वसन संबंधी रोग(respiratory disease)

* अस्थमा (दमा) →

अस्थमा में श्वसनी और श्वसनिकाओं की शोथ के कारण श्वसन के समय घरघराहट होती है। तथा श्वास लेने में कठिनाई होती है।

(ii) श्वसनी शोथ (Bronchitis)→

यह श्वसनिकी शोथ या सूजन है जिसके विषेष लक्षण श्वसनी में सूजन तथा जलन होना होता है जिससे लगातार खांसी होती है।

(iii) Emphysema (यातस्फीति) →

 यह एक चिरकालिक (Chronic=Long Lasting) रोग है जिसमें कूपिका भित्ति या झिल्ली क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे गैस विनिमय सतह घट जाती है। लगातार धूम्रपान इसके होने का मुख्य कारण है।

(iv) तपैदिक /क्षयरोग (TB -Tuberculosis)-

तपैदिक रोग Mycobacterium Tuberculae नामक जीवाणु से होती है एवं इस बीमारी में लम्बे समय तक (दो हफ्ते से ज्यादा) खांसी बनी रहती है।
व्यवसायिक श्वसन रोग (Occupational Respiratory Diseases)→
a- Silicosis-पत्थर की खदानों में कार्य करने वाले लोगों को यह बीमारी Silicadust (SiO-Silicon DiOxide) के कारण होती है।
b- काला फुफ्फस रोग (Black lung disease)→यह बीमारी कोयले की खदानों में काम करने वाले लोगों को होती है तथा इस बीमारी में श्वास लेने में अत्यधिक परेषानी होती है।
c- फुपफस शोथ/प्रदाह(Pneumonia) →यह रोग अधिकतर दो साल से कम उम्र के बच्चों को होता है। यह रोग Diplococcus pneumonae नामक बैक्टीरिया से होता है।

Note →मानव शरीर के दोनों फेफड़ों में लगभग 30 करोड (300 million) कूपिकाएं होती है।

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