पाचन तंत्र की परिभाषा,मानव पाचन तंत्र भागों और कार्यों,भोजन का पाचन कैसे होता है - GS ONLINE HINDI

रविवार, 24 मई 2020

पाचन तंत्र की परिभाषा,मानव पाचन तंत्र भागों और कार्यों,भोजन का पाचन कैसे होता है

पाचन तंत्र की परिभाषा,

मानव पाचन तंत्र भागों और कार्यों,भोजन का पाचन कैसे होता है?आमाशय में भोजन का पाचन कैसे होता है?मनुष्य के पाचन तंत्र में प्रोटीन का पाचन कैसे होता है?पाचन तंत्र का सबसे बड़ा भाग होता है

* पाचन तंत्र (Digestive system)


✏ भोजन सभी सजीवों की मूलभूत आवष्यकताओं में से एक है हमारे भोजन के मुख्य अवयव कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा है। अल्प मात्रा में विटामिन एवं खनिज लवणों की भी आवष्यकता होती है । भोजन से ऊर्जा एवं कई कच्चे कायिक पदार्थ प्राप्त होते है जो ऊतकों की वृद्धि एवं मरम्मत के लिए काम आते है। जो जल हम ग्रहण करते हैं यह उपापचयी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एवं शरीर के निर्जलीकारण को भी रोकता है।
✏ हमारा शरीर भोजन में उपलब्ध जैव रसायनों को उनके मूल रूप में उपयोग नहीं कर सकता अतः पाचन तंत्र में छोटे-छोटे अणुओं में विभाजित कर साधारण पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है।
✏ जटिल पोषक पदार्थो को अवषोषण योग्य सरल रूप में परिवर्तित करने की इस क्रिया को पाचन (Digestion)कहते है।


पाचन तंत्र की परिभाषा,

Digestive system





मनुष्य का पाचन तंत्र आहारनाल एवं सहायक ग्रंथियों से मिलकर बना होता है 


(i) आहारनाल (Alimentary Canal- Avergae Length 9m) आहारनाल अग्र भाग में मुख से प्रारंभ होकर  पच्य भाग में स्थित गुदा द्वारा बाहर की ओर खुलती है।

(ii) मुख--- मुख, मुखगुहा में खुलता है, मुखगुहा में कई दांत और एक पेषीय जिहा होती है।

(iii) दांत --- दात एक गर्तदन्ती व्यवस्था में होते है. मनुष्य सहित अधिकाष स्तनधारियों के जीवनकाल में दो तरह के दात आते है ।
(a) अस्थायी दांत समूह (दूध के दांत) = 20 (दांत)
(b) स्थायी दांत = 32 (दांत)

 ✏ इस तरह की व्यवस्था को द्विबारदन्ती (diphyodont) कहते है।
 ✏ Enamel से बनी दातो की चबाने वाली कठोर सतह भोजन को चबाने में मदद करती है।
 ✏ जीभ की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे उभार के रूप में Papilla होते है जिनमें कुछ पर स्वाद कलिकाएं होती है।
 ✏  मुखगुहा एक छोटी प्रसनी में खुलती है जो वायु एंव भोजन दोनों का ही पच है। 
 ✏  उपास्थिमय मघाटी ढक्कन (Epiglottis) भोजन को निगलते समय श्वास नली में प्रवेष करने से रोकती है। ग्रसिका एक पतली नली है जो गर्दन एवं मध्य पट्ट से होते हुए पश्य भाग में । आकार की थैलीनुमा आमाषय (Stomach) में खुलती है।

✏ ग्रसिका का आमाषय में खुलना एक पेषीय (आमाघय ग्रसिका - Oesophagial Sphinctor)अवरोधनी द्वारा नियंत्रित होता है।
आमाषय को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
(i) जठरागम भाग - इसमें प्रसिका खुलती है
(ii) फडस भाग
(iii) जठरनिर्गम - इससे भोजन का निकास छोटी आंत में होता है।



 छोटी आंत के तीन भाग होते है

(i) Cआकार की Dudoenum (पक्वाशय)
(ii) Jejunum
(iii) Ileum

छोटी आंत,बड़ी आंत में एक शुद्रान्त के द्वारा खुलती है।
आहार-नाल की दीवार में ग्रसिका से मलाषय तक 4 स्तर होते है
(i) सीरोसा (Serosa)
(ii) भीतरी वर्तुल (Inner circle)
(iii) सब- म्यूकोसा (Sub-mucosa )
(iv) म्यूकोसा (Mucosa)

✏ सीरोसा सबसे बाहरी परत है और एक पतली mestothelium और कुछ संयोजी ऊतकों से बनी होती है।
✏ sub-mucosa स्तर रूपिर, लसिका व तंत्रिकाओं युक्त मुलायम संयोजी ऊतकों की बनी होती है।
✏ आहार नाल की Lumen की सबसे भीतरी परत mucosa है यह स्तर आमाषय में अनियमित वलय एवं छोटी आंत में अंगुलीनुमा प्रवर्म बनाता है जिसे अंकुर (Villi) कहते है।
✏ अंकुर की सतह पर स्थित कोषिकाओं से असंख्य सूक्ष्म प्रवर्ध निकलते है जिन्हें सूक्ष्म अंकुर कहते (Micro Villi) है।
✏ यह रूपान्तर सतही क्षेत्र को अपपोषण के लिए अत्यधिक बढ़ा देता है।


✒ पाचन तंत्र के प्रमुख पांच भाग होते है(i)

(i) अंतर्ग्रहण (Ingestion)(ii) पाचन (Digestion)(iii) अगषोषण (Absorption)(iv) स्वांगीकरण (Assimilation)(v) मलत्याग (Egestion)





पाचन ग्रंथियां (Digestive Glands) 


प्राहारनाल से संबंधित पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथिया यकृत, अग्नाषय शामिल है।


✒ लार का निर्माण तीन जोड़ी नथियां करती है।

(i)कर्णपूर्व (i) अधोजभ (iii) अधोजिंहा
इन ग्रंथियों से लार मुखगुहा में पहुंचती है।


यकृत (Liver)


✏ यकृत मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है जिसका वयस्क व्यक्ति में भार लगभग 12 -1.5 kg है। यह उदर में मध्यपट्ट के ठीक नीचे स्थित होता है और इसकी दो पालिया होती
✏ यकृत पालिकाएं (Hepatocyte) यकृत की संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई है जिनके अंदर यकृत कोषिकाएं रणु की तरह व्यवस्थित रहती है।
✏ प्रत्येक पालिका सयोजी ऊतक की एक पतली परत से ढकी होती है जिसे Glisson's Capsule कहते है।

✏ यकृत की कोषिकाओं से पित्त का स्त्राव होता है जो यकृत नलिका से होते हुए एक पतली नालिका से मिलकर एक मूल पित्तवाहिनी बनाती है।पित्ताषयी नलिका एवं अग्नाषयी नलिका दोनों मिलकर यकृतअग्नाषयी वाहिनी द्वारा ग्रहणी (Dodoenum ) में खुलती है।

✏ अग्नाषय C आकार के ग्रहणी के बीच स्थित एक लम्बी ग्रंथि है जो बहिः स्वायी (Exocrine) एवं अन्तः स्त्रावी (Endocrine) दोनों ही ग्रंथियों की तरह कार्य करती है।
(a)बहिः स्त्रावी (Exocrine) +अग्लाषय रस Trypsin ,Amyalas, Lipase
(b)अन्तः स्त्रावी (Endocrine) इसका मुख्य भाग Islets of Langerhans होता है।


✏ इसमें तीन प्रमुख प्रकार की cells होती है 

(i)  a - cell - Glucagon हार्मोन निकलता है।
(ii) B - cell - Insulin हामोन निकलता है।
(iii) y- cell - Somatostatin हार्मोन निकलता है।

✒ भोजन का पाचन (Digestion of food)

Digestion of food



✏ पाचन की क्रिया यांत्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा सम्पन्न होती है। मुखगुहा के मुख्यतः दो प्रकार है
(i) भोजन का चर्वण (चबाना)
(ii) निगलने की प्रक्रिया

✏ लार की मदद से दांत और जीभ भोजन को अच्छी तरह घबाने और मिलाने का कार्य करते है लार का श्लेषम हमें भोजन कणों को चिपकाने एवं उन्हें योलस(Bolus) में रूपान्तरित करने में
मदद करता है। इसके उपरान्त निगलने की क्रिया द्वारा ग्रसनी से ग्रसिका में चला जाता है।
✏ जठर ग्रसिका अवरोधनी भोजन के आमाषय में प्रवेष को नियंत्रित करती है। लार में विद्युत अपघट्य (electrolyte Na+, K+ Ca+, CI) और एन्जाइम (Salivary Amyalase, Piyalin) होते है।

✏ पाचन की रासायनिक प्रक्रिया मुखगुहा में कार्वोहाइड्रेट को जलअपघटित करने वाली एन्जाइम (Piyalin, लार Amyalase) की राशियता से प्रारंभ होती है।
✏ लगभग 30% starch इसी एन्जाइम की सक्रियता से द्विषर्करा माल्टोज में अपघटित हो जाती है।
✏ लार में उपस्थित लाइसोजाइम (Lysoryme) जीवाणुओं के संक्रमण को रोकता है।
✏ आमाषय की Mucosa में जकर ग्रंथियां स्थित होती है। जठर ग्रंथियों में मुख्य रूप से तीन प्रकार की कोषिकाएं होती है 
(i) Mucus का स्त्राव करने वाली श्लेषमा ग्रीवा कोषिकाएं
(ii) Peptic या मुख्य कोषिकाएं जो प्रो एल्जाइम Pepsinogen का स्त्राव (Secretion) करती है।
(iii) नितीय या Oxyntic cell जो HCI का स्त्राय करती है। यह HCI, Pepsinogen को Pepsin में बदलता है। इस वजह से जबर रस का pH मान 1.8 होता है।

Note - नवजातों के जठर रस में रेनिन (Renin) नामक प्रोटीन अपघट्य एन्जाइम होता है जो दूध के प्रोटीन को पचाने में सहायक होता है।

Ceseinogen  (Milk protein)   ⏩  Rennin   ⏩  Casein

Protein ⏩    Pepsin    ⏩   Peptones/ proteases



▶ छोटी आंत का पेषीय स्तर कई तरह की गतियां उत्पन्न करता है इन गतियों से भोजन विभिन्न स्रावों में अच्छी तरह से मिल जाता है और पाचन की क्रिया सरल हो जाती है।
▶ यकृत अग्नाशयी नलिका द्वारा पित्त अग्नाषयी रस और आंत्र (Intestinal juice ) रस छोटी आत में छोड़े जाते है।
▶ अग्नाषयी रस में Trypsinogen, Chymptrypsinogen, प्रोकार्बोवित्तपेप्टाइडेज, अमाइलेज और Nuclease एन्जाइम निष्क्रिय रूप में होते है।
▶ आंत्र Mucosa द्वारा स्त्रावित Enterolcinase द्वारा Trypsinogen सक्रिय Trypsinमें बदल जाता है। जो अग्नाषयी रस के अन्य एन्जाइमों को सक्रिय करता है।
▶ ग्रहणी में प्रवेष करने वाले पित्त रस में पित्त वर्णक. (Billirubin & Biliverdin) पित्त लवण, Cholesterol और Phospholipid होते है। लेकिन कोई एन्जाइम नहीं होता है।
▶ पित्त वसा के Emulsification करता है और उसे छोटे-छोटे विभिन्न micelles कणों में तोडता है। पित्त लाइपेज एन्जाइम को भी सक्रिय करता है।



     पाचित उत्पादों का अवशोषण:-


▶ मुख :- 1. कुछ औषधियां जो मुख और जीभ की निचली सतह के mucosa के संपर्क में आती है, वे आस्तरित करने वाली रूधिर कोषिकाओं में अवषोषित हो जाती है।

▶आमाशय :- जल, सरल शर्करा एल्कोहॉल आदि का अवषोषण होता है

▶ छोटी आंत :-  पोषक तत्वों के अवषोषण का प्रमुख अंग है। यहां पर पाचन की क्रिया पूरी होती है और पाचन के अंतिम उत्पाद जैसे- ग्लूकोज, fructose वसीय अम्ल, ग्लिसरॉल और अमीनो अम्ल को
mucosa द्वारा रक्त प्रवाह में अवषोषण होता है।

▶ बडी आंत :- जल,कुछ खनिजों और औषधि का अवषोषण होता है।



पाचन तंत्र के विकार

(i) पीलिया (jaundice)
(ii) यमन (vomiting)
(iii) प्रवाहिका (diarrhoea)
(iv) कोषावद्धता (कज, constipation)
(v) अपच (Indigestion)

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